60 Days Of Victory | जीत के 60 दिन 


ये कहानी है 1990 की जब इराक और कुवैत के बिच काफी समय से झगडा चल रहा था | उनमे बस एक ही बात को लेकर तनाव था |  वो है पैसा इराक पर कुवैतियो का 14 बिलियन डॉलर का क़र्ज़ था जिसे इराक माफ़ करवाना चाहता था | इराक कुवैत पर दबाव डाल रहा था |की वो कम तेल पैदा करे ताकि इंटरनेशनल मार्किट में और कीमत  बढे और इराक को ज्यादा फायदा हो |
माफिया और धमकी के बीच कुवैतियो पर एक और भी इल्जाम भी था तेल चुराने का इल्जाम इसी लिए इराक की शर्ते ना मानने पर इराक ने कुवैत पर हमला कर दिया |और जिसने ये हमला करवाया उसका नाम
 (सद्दाम हुसैन ) था |

इराक का कुवैत पर हमला 
लेकिन कुवैतियो को इस बात से कुछ फर्क नही पड़ा क्योकि उन्हें लगा की इराक इस बार भी आपसी झगड़े को लेकर और अपनी शर्ते मनवाने और अपना क़र्ज़ माफ़ करवाने के लिए ऐसी हरकते कर रहा है | लेकिन इस बार ऐसा नही था इराक ने सच में हमला कर दिया था  | जगह - जगह बम ब्लास्ट होने लगे और कही गोलिया चलने लगी |तब कही कुवैत के रेडियो पर इस हमले के बारे में बताया और सावधान रहने को कहा |
तब कही जाके कुवैतियो को समझ में आया की इराक ने इस बार सच में हुम्ला कर दिया है |
पहली रात सद्दाम हुसैन के बम ब्लास्ट करते ही कुवैत की सरकार कुवैत के लोगो को छोड़ कर उसी रात मोका देख कर भाग गई | जिसके कारण इराकियों ने कुवैत के चपे-चपे पर अपना कब्ज़ा कर लिया था |
इराक के आर्मी के जवानो ने कुवैत में रहने वाले लोगो का जीना हराम कर दिया था | लोगो को सरे - आम मरने लगे कुवैतियो को देखते ही गोली मार देते थे | इसी इराक और कुवैत के हमले के बिच और बाकी देशो के लोग भी फसे हुए थे | जिनमे भारतीय भी थे कुविअत में हुए इस हमले में कम से कम एक लाख सत्तर  हजार (1,70000) भारतीये लगो फसे हुए थे | लेकिन इराकी भारतीयों को कुछ नुकसान नहीं पंहुचा रहे थे  यह तक की इराकियों ने भारतीयों लोगो को कुवैत से जाने के लिए भी बोला | लेकिन हमारे भारतीये लोग वहा से नही जा सके क्योकि उन्हें पता था की कुवैत की हर जगह इराक के जवानों ने घेर रखी है बस स्टैंड , रेलवे स्टेशन , एअरपोर्ट सभी जगह इसी लिए भारतीये कुवैत से नहीं जा सके |

इन्ही भारतीये लोगो के बीच एक ऐसा भारतीये भी था जो कुवैत का जाना - माना बिजेनेस आदमी था जिसका नाम (रणजीत कात्याल ) था  |जो कुवैत और इराक के ज्यादा टार बड़े लोगो को जनता था |यह तक की इराक के राष्ट्रपति , प्रधानमंत्री , और इराकी आर्मी के जनरल को भी जानता था | उस समय कुवैत के बहुत बुरे हालात थे यह तक की कुवैत की करंसी का भाव भी मिटटी के बराबर हो गया था  | इसी कारण कुवैत के बड़े से बड़े अमीर लोग भी करंसी के भाव गिरने से रोड पर आ गए थे | इतना कुछ होने के बाद भी वहा के बिज़नस मैन 
रणजीत कात्याल करंसी के भाव गिरने से पहले ही अपने करोड़ो रूपए स्विज़ बैंक में रख दिए थे |जो ऐसे हालात में उनके काम आये |
इराक की सरकार व सेना ने रणजीत को कुवैत से जाने के लिए कहा तो रणजीत अपने परिवार की जान बचने के लिए वहा से जाने के लिए तयार हो गये | लेकिन  उन्होंने अपने घर जाने के बाद एक भारतीये होने के नाते बहुत सोचा की उनके जैसे बहुत से भारतीये परिवार भी कुवैत में फसे हुए है |और वो उन सबको ऐसे छोड़ कर नहीं जा सकता | तभी उन्होंने फैसला किया की वो कुवैत से अकेले नहीं जायेंगे , वो कुवैत में फसे सभी अपने देशवासियों को यह ने निकाल कर ले जायेंगे रणजीत कात्याल ने अपने इस मिशन को पुरा करने के लिए बहुत महनत की उन्होंने अपने सभी जानने वाले सभी नेता , बिज़नस मैन , और बाकी बड़े लोगो से बात की |पर उनकी मदद कोई नहीं कर पाया | 
लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी थी उसके बार फिर वे कुवैत के पासपोर्ट कार्यालय गए जहा से उन्हें किसी भारतीये का फ़ोन नंबर मिला जो की एक सरकारी नौकरी  करते थे | जिनका नाम ( संजीव कोहली ) था |
रणजीत  कात्याल ने कुवैत में बने हालात के बारे में संजीव कोहली को बताया |लेकिन वो रणजीत के लिए कुछ नहीं कर सकते थे क्योकि वो भारत में एक छोटी सी सरकारी नौकरी करते थे |लेकिन रणजीत ने हार न मानी और उन्होंने संजीव से बार - बार बात की और अपने बिगड़ते हालात बताये और खा की मेरी सारी बाते कैसे न कैसे करके प्रधानमंत्री तक पंहुचा दे | संजीव ने बहुत सोचा की उनकी मदद करे या न करे |
फिर भी एक भारतीये होने के नातें उनका फ़र्ज़ था की वे उनकी मदद करे | संजीव ने रणजीत की सारी बाते सुनी और कुवैत में फे सभी भारतीयों के हालात के बारे में कैसे न कैसे करके प्रधानमंत्री तक पहुचाई |जिसके कारण भातिये सरकार ने अपनी सारी त्यारियां करली और पासपोर्ट ऑफिस को उन सभी भारतीये लोगो के नकली पासपोर्ट बनाने को कहा |
भारत में तयारी सही चल रही थी | लेकिन कुवैत में फसे लोगो के हालात बिगड़ते जा रहे थे | उनसे इराकियों ने रहने की जगह और खाने का सामान सब छीन लिया था |ये सब देख रणजीत से रहा ना गया और वो बग़दाद (इराक में ) गए वहाँ जाकर उन्होंने फ़ौरन मिनिस्टर  (तरिक़ज़िज़ ) से भारत जाने की आज्ञा ली और वापस कुवैत आ गए |
उनको आज्ञा मिली की वो उनके जहाज टीपू सुलतान से अपने लोगो को भारत लेजा सकते है | रणजीत इस बात से खुश हुए और वापस आकर अपने लोगो को सारी बाते बताई | और भारत जाने को कहा लेकिन जैसे ही लोग जहाज में जाने लगे तो रणजीत  को  खबर मिली की इराकियों ने सारे रास्ते बंद कर दिए है |और खा गया है की ना तो कुवैत से कुछ बाहर जायेगा और ना ही कुछ अंदर आएगा | ये बात सुनकर रणजीत के सारे सपने मिटटी में मिल गये | तभी उन्होंने सोचा की अब तो उनके लिए खतरा और बढ़ गया है |क्योकि इराकियों को सब पता चल गया था |इसी लिए रणजीत ने रातों - रात यहाँ से जाने का फासला किया | तभी उन्हें पता चला की कोई कूड़े कच्चारे का जहाज समुन्द्र के रास्ते भारत जा रहा है | तो वो वहा जहाज के पायलेट से बात करने गए  | लेकिन बात करने पर वो पायलेट नहीं मानता इसलिए रणजीत उन्हें मनाने के लिये और अपने 500 लोगो भारत ले जाने के लिए एक लाख डॉलर (100000 $) देने को कहता है | पायलेट मान जाता है और 500 लोगो को भारत ले जाने लिए हा कर देता है | लेकिन पता नहीं कैसे ये बात इराकियों को पता चल जाती है और वो फिर उस जहाज पर कब्ज़ा कर लेते है | और इस बार खतरा और बढ़ गया था रणजीत का कुवैत में रहना अब खतरे से खाली नही था | वो कैसे  न कैसे करके कुवैत  से अपने सारे लोगो को बचा कर भारत जाना चाहता था | तभी उन्हें भारत से संजीव का फ़ोन आता है और कहता है की हमने जोर्डन से बार की है  और उन्होंने कहा  है की भारतीये अमान (जो की इराक में  है ) आ सकते है | लेकिन अमान जाना इतना आसान नहीं था वो कुवैत से लघभग 1000 किलोमीटर दूर था |और उसका रास्ता इराक से होकर जाता है | लेकिन रणजीत के पास इसके अलावा और कोई रास्ता भी तो नही था | और रातों - रात कुवैत से जॉर्डन जाने के लिए तयार हो जाते है | वो लोग कैसे न कैसे करके कुवैत से जॉर्डन पहुच जाते है और वहाँ जाकर जॉर्डन के एअरपोर्ट चले जाते है | लेकिन उनके पास पासपोर्ट नहीं था | इसलिए वो भारत नहीं जा सकते थे  | ये सब देख रणजीत की उम्मीद टूट जाती है लेकिन कुछ देर बाद वो संजीव से बात करते है लेकिन संजीव ने वहा पहले से ही त्यारियां कर रखी थी |उन सब के नकली पासपोर्ट बनवा रखे थे | बस संजीव उनका जॉर्डन आने का इन्तजार कर रहा था | जैसे ही संजीव को पता चला की सारे लोग जॉर्डन के एअरपोर्ट पहुच चुके है तभी उसने भारत के प्रधानमंत्री को बताया और फिर उन्होंने जॉर्डन बात की इस तरह जॉर्डन ने सभी भारतीयों को भारत जाने दिया | 


लोग ज्यादा होने के कारण  भारत के प्रधानमंत्री ने भारत से भी कुछ हवाई जहाज भेजे जिनकी संख्या लगभग 488 थी और उन जहाजो को चलाने के लिए 1000 से भी ज्यादा पायलेट थे | जिनमे एयरफोर्एस , एयर  इंडिया , और सभी एयरलाइन्स के पायलेट सामिल थे | रणजीत कात्याल इस तरह अपनी इंसानियत और बहादुरी से उन सभी एक लाख सत्तर हजार   (1,70000)भारतीयों को कुवैत में हुए इराकियों के आतंक से बचा कर 
सही सलामत अपने घर अपने देश भारत ले आते है |


 उनका कहना है की संजीव जैसे ऑफिसर अगर उनके साथ नहीं होते तो वे ये कभी नहीं कर पाते  |
ये मिशन करीब 60 दिनों तक चला जिसमे हमारे सभी भारतीये लोग सही सलामत अपने घर पहुच गये |
ये कहानी एक सच्ची घटना पर आधारित है |

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